मैं मुहब्बत करने का आदी रहा हूँ। बस इक उसी के वास्ते मुरादी रहा हूँ। जिससे जीते जी मिलता नही था मैं, मिलने को उससे अब राजी रहा हूँ। उसी मुहब्बत ने खून के आंसू रुलाये है, जिस मुहब्बत में पहले नवाबी रहा हूँ। ये मन शांत हो गया जिसके जाने से, कभी जीते जी उसके फ़सादी रहा हूँ। इश्क़ में मरते रहे दिलफेंक आशिक रोज, मगर इस मु'आमले में मैं अपवादी रहा हूँ। हमे कुँवारा समझने की भूल मत करना, इस शादी से पहले भी शुदाशादी रहा हूँ। वो इश्क़ में भी शुद्ध खरा सोना निकली, मैं लाख घिस-पीट कर भी चांदी रहा हूँ। उधर वो अपने कर्मो से पीतवस्त्रधारी हुई, इधर मैं पोशाक में भी खद्दरधारी रहा हूँ। "शिवा" जन्नत से भी मुझे ही पूजती होगी, इस दोज़ख में मैं जिसका पुजारी रहा हूँ। मैंने सब काम किये है जाहिलों के मगर, वैसे कहने को तो "दुर्गेश तिवारी" रहा हूँ। सादर प्रणाम। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 ©Durgesh Tiwari..9451125950 sdt💗211..