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अपनी जिंदगी यूं बरबाद करने चला हूं, दिल जिगर को धु

अपनी जिंदगी यूं बरबाद करने चला हूं,
दिल जिगर को धुएं के हवाले करने चला हूं।

अग्न गुर्दों और फेफड़ों को लगाने चला हूं,
स्वयं को कैंसर की बीमारी देने चला हूं।
 
उम्र अपनी कम करने चला हूं,
साख अपनी मिटाने चला हूं।

बहुत जी लिया परेशानियों के साए में
मौत को अब अपने गले लगाने चला हूं,
बहुत बिता लिए दिन गम के साए में
स्वयं को जलती हुई रोशनी के हवाले करने चला हूं।

©Shishpal Chauhan
  # धूम्रपान

# धूम्रपान #कविता

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