मातु-पिता की शरण , मिलते चारों धाम । इनकी सेवा जो करे , खुश होते श्री राम ।। दीपक जिनके नाम से , जलता है अब द्वार । ऐसे वीरो को नमन , करता बारम्बार ।। साँस साँस कुर्बान है , सुनों वतन पे आज । जिनके दम खम से बची , सदा वतन की लाज ।। १४/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मातु-पिता की शरण , मिलते चारों धाम । इनकी सेवा जो करे , खुश होते श्री राम ।। दीपक जिनके नाम से , जलता है अब द्वार । ऐसे वीरो को नमन , करता बारम्बार ।। साँस साँस कुर्बान है , सुनों वतन पे आज । जिनके दम खम से बची , सदा वतन की लाज ।।