परिंदों को उड़ा कर देखते हैं फज़ाओं को सजाकर देखतें हैं कोई आता नहीं ज़ुल्मत कदे में चरागों को जला कर देखते हैं जहाँ में अम्न की ख़्वाहिश हमें है तो हम खुशियाँ लुटा कर देखते हैं न जाने नींद कैसे आएगी अब तेरी यादें भुला कर देखते हैं किसी के घर तो फैलेगा उजाला ये दिल अपना जला कर देखते है भला कब तक वो यूँ रूठा रहेगा मुहब्बत से मना कर देखते हैं बहुत मशहूर है उनकी नवाज़िश कभी हम आज़मा कर देखते हैं बुलाने से कहाँ आता है कोई चलो फिर भी बुला कर देखते हैं यहाँ आलूदगी बढ़ने लगी है कहीं हम और जा कर देखते हैं ©पल्लवी मिश्रा, दिल्ली। #RDV19 #ghazal #ग़ज़ल #शायरी #पल्लवीमिश्रा