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पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ, किन्तु

पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ,
किन्तु जब स्त्री आलोचना की बारी आती है,
तो मैं अपनी जाति की प्रतिनिधि बन जाती हूँ,
घर बसाने, वंश बढ़ाने के लिए अपनायी जाती हूँ,
भिन्न-भिन्न मानकों और प्रतीकों से तौली जाती हूँ,
मेरी निष्ठा और समर्पण तभी सिद्ध होते हैं,जब मैं,
अपने माँ-बाप के लिए पूर्णतया परायी हो जाती हूँ,
इसलिए यदि तुम पर अपना अधिकार चाहती हूँ,
तो इसमें आलोचना और नाजायज़ माँग कैसी ?
मैं तुम्हारे लिए ही तो अपना सब पीछे छोड़ आती हूँ।
सिंदूर बिंदी शाखा-पोला,न मंगल-सूत्र ही मेरे नाम का,
चलता नहीं साथ तुम्हारे,कोई भी चिन्ह मेरे सुहाग का,
बच्चे की माँ हूँ, ये तो मेरी फैली काया से ही दिख जाता है,
बच्चे के बाप का नाम तो बस कागज ही में लिखा जाता है।
घर से बाहर,मुझ से दूर,तुम पूरी तरह कुँवारे ही हो,
मैं जहाँ तक चली जाऊँ,ब्याहता हूँ,और तुम्हारी ही हूँ।
इसलिए तुम्हारे प्रेम की अभिव्यक्ति हर बार चाहती हूँ,
वफादारी का आश्वासन तुमसे बार-बार मांगती हूँ। पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ,
किन्तु जब स्त्री आलोचना की बारी आती है,
तो मैं अपनी जाति की प्रतिनिधि बन जाती हूँ,
घर बसाने, वंश बढ़ाने के लिए अपनायी जाती हूँ,
भिन्न-भिन्न मानकों और प्रतीकों से तौली जाती हूँ,
मेरी निष्ठा और समर्पण तभी सिद्ध होते हैं,जब मैं,
अपने माँ-बाप के लिए पूर्णतया परायी हो जाती हूँ,
इसलिए यदि तुम पर अपना अधिकार चाहती हूँ,
पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ,
किन्तु जब स्त्री आलोचना की बारी आती है,
तो मैं अपनी जाति की प्रतिनिधि बन जाती हूँ,
घर बसाने, वंश बढ़ाने के लिए अपनायी जाती हूँ,
भिन्न-भिन्न मानकों और प्रतीकों से तौली जाती हूँ,
मेरी निष्ठा और समर्पण तभी सिद्ध होते हैं,जब मैं,
अपने माँ-बाप के लिए पूर्णतया परायी हो जाती हूँ,
इसलिए यदि तुम पर अपना अधिकार चाहती हूँ,
तो इसमें आलोचना और नाजायज़ माँग कैसी ?
मैं तुम्हारे लिए ही तो अपना सब पीछे छोड़ आती हूँ।
सिंदूर बिंदी शाखा-पोला,न मंगल-सूत्र ही मेरे नाम का,
चलता नहीं साथ तुम्हारे,कोई भी चिन्ह मेरे सुहाग का,
बच्चे की माँ हूँ, ये तो मेरी फैली काया से ही दिख जाता है,
बच्चे के बाप का नाम तो बस कागज ही में लिखा जाता है।
घर से बाहर,मुझ से दूर,तुम पूरी तरह कुँवारे ही हो,
मैं जहाँ तक चली जाऊँ,ब्याहता हूँ,और तुम्हारी ही हूँ।
इसलिए तुम्हारे प्रेम की अभिव्यक्ति हर बार चाहती हूँ,
वफादारी का आश्वासन तुमसे बार-बार मांगती हूँ। पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ,
किन्तु जब स्त्री आलोचना की बारी आती है,
तो मैं अपनी जाति की प्रतिनिधि बन जाती हूँ,
घर बसाने, वंश बढ़ाने के लिए अपनायी जाती हूँ,
भिन्न-भिन्न मानकों और प्रतीकों से तौली जाती हूँ,
मेरी निष्ठा और समर्पण तभी सिद्ध होते हैं,जब मैं,
अपने माँ-बाप के लिए पूर्णतया परायी हो जाती हूँ,
इसलिए यदि तुम पर अपना अधिकार चाहती हूँ,