किस्सा रसकपूर - रागनी 8 तर्ज : देशी ओ घूर्जटि शिवशकर भोले, मनै तत का ज्ञान बतादे । श्रीगंगाजी नै सिर पै धरकै वा भोली शान दिखादे ।। मैं ब्रह्म पिता की बेटी तूं एक वेश्या के घर जाई। जन्म से जात, जात से कर्मा, क्यूँ ईसी गति बणाई। पैर में धुंघरु, मुँह पै गाणा, ना कदे खेली खाई। वेश्या के घर जन्म लेणियाँ के ना होते ब्याह सगाई। बान बैठकै मैं घालूँ स्याही, कोऐ ऐसा जतन लगादे । श्रीगंगाजी नै सिर पै धरकै वा भोली शान दिखादे ।। रामायण महाभारत गीता, बाँचू हरदम पाक कुरान | वेद शास्त्र सारे जाणू, जिनसे बढ़ता मेरा ज्ञान । सरस्वती की पूजा करकै, लय में बाँधू सूर और तान | पार्वती माँ रक्षक मेरी, जिनका रखती आदर मान । जो बणज्या मालिक मेरी जान का वो नर मनै मिलादे । श्रीगंगाजी नै सिर पै धरकै वा भोली शान दिखादे ।। दिल में पक्की धार लेई सै, ना वैश्या बणकै रहणा। न्यूँ तै मैं भी जाण गई यो पड़ेगा दुख मनै सहणा । कर्मा करकै मिल्या करै सै साजन, धन और गहणा । पतिव्रता ही पति को देती प्रेम सुख और लहणा। गुरुजनों का मैं मानूँ कहणा जो आकै ज्ञान सिखादे । श्रीगंगाजी नै सिर पै धरकै वा भोली शान दिखादे ।। शिवजी, कृष्ण, राम नै पूजूँ, चार बख्त की पढूं नमाज । फिर भी दुनिया तान्ने मारै, कैसा उल्टा म्हारा समाज । जो तन लागै, वो तन जाणै, राम की लाठी बेआवाज । अपणी-अपणी रागणी भई, अपणा-अपणा साज और बाज । आनन्द कुमार कहै बात राज की, जै कोए ढंग तै गादे । श्रीगंगाजी नै सिर पै धरकै वा भोली शान दिखादे ।। गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21 #हरयाणवी_रागनी