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मेरी छोड़, तू अपनी सोच, जान बचा, जब से कलम पकड़ी ह

मेरी छोड़, तू अपनी सोच, जान बचा,
जब से कलम पकड़ी है, मुझे तो तभी से ख़तरा है।
कलम घिस चुकी है, हक़ीक़त लिख चुकी है,
कोई बताए हाकिम को अब उसे भी ख़तरा है।

-फ़क़त उमेश। #हक़ीक़त
#कलम
#ख़तरा
मेरी छोड़, तू अपनी सोच, जान बचा,
जब से कलम पकड़ी है, मुझे तो तभी से ख़तरा है।
कलम घिस चुकी है, हक़ीक़त लिख चुकी है,
कोई बताए हाकिम को अब उसे भी ख़तरा है।

-फ़क़त उमेश। #हक़ीक़त
#कलम
#ख़तरा