किस्सा रसकपूर तर्ज : यह पर्दा हटा दो, ज़रा मुखड़ा दिखा दो ओ नसीबन बाई, तू महफ़िल में गाणे आई तनै अक्कल कोन्या आई, कैसा गाणा चाहिए । महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... गुरु मानसिंह नेत्रहीन थे, ज्ञान का पेडा लागे उसकी मेवा तोड़ तोड़ कै, बड़े बड़े साँगी खागे ना छाप काटके गाइए, रंग नया छाँट के ल्याईए कोए ऐसा राग सुनाइये के रंग छाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... गीत भजन और राग रागणी, नाटक या नौटंकी जितनी कर दयूं, उतनी ए थोड़ी, प्रशंसा लख्मीचंद की ढंग की लय भी ठाई जा सै, बेसुरी बुरी बताई जा सै इज्जत की खाई जा सै, ना के पाप कमाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... मायने के महँ श्री दयाचन्द नए नए छंद बणावे नई रागनी, नई तर्ज, इसी लय सुर में वो गावै चाहवै सै सारा जमाना, प्रसिद्ध कर दिया जग में मायना इसा मारे तीर रक्काना, के मन भाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... करके याद गुरु अपणे ने, नई रागणी त्यार करै मांगेराम पाणची आळा, लय सुर की इसी मार करै पार करै गंगा जी माई, वार करी ना कथा बणाई, इसी शब्दाँ की करी घड़ाई, मन हर्षाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... जाट मेहरसिंह फौज में होके, देश के ऊपर मरग्या देशभक्ति और वीर रस ने, नस नस के महँ भरग्या करग्या ऊँचा नाम बरोणा, दुश्मन ते कदे डरो ना बिन आई मौत मरो ना, हँगा लाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए।। ओ नसीबन बाई..... आज बाजे भक्त और धनपत सिंह ना चन्दरबादी साथ में श्री राजकिशन गए शीश निवा, ब्राहमण जगननाथ ने बात ने गलत नहीँ बोलेगा, आनन्द नरजे में तोलेगा इन्हकी चरण रज ले लेगा, शीश निवाणा चाहिए। महफ़िल में गाणे वाळा भी कोए स्याणा चाहिए ओ नसीबन बाई..... गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21 #हरयाणवी