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जलती बुझती ये साँसों की लौ जाने कब तक ठहर पाएगी की

जलती बुझती ये साँसों की लौ
जाने कब तक ठहर पाएगी
की तूफान ज़िन्दगी का हिस्सेदार है
आज नहीं तो कल,निभा जाएगी
और शिकायतों से लिपटा हुआ इश्क़
कागजों में ही करवटें ले रहा
स्याही बेरंग जुबान में लफ्ज़
अल्फाजों में ही सिमट जाएगी
फिर एहसासों का क्या हो हाल
धड़कनें,दिल में ही दम भर जाएगी

©paras Dlonelystar
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