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तुम आवाज़ उठाते हो जहाँ पानी का ना अंत है, तुम्हार

तुम आवाज़ उठाते हो जहाँ पानी का ना अंत है,
तुम्हारी चीख सुनने को उनके दोनों कान बंद है।

तुम पीड़ित हो न? तुम कुछ मत बोलो,
कीचड़ फेंका तुम पर? तुम मुँह धोलो।

तुम जाती हो छोड़कर हमे? अब हम शोक मनाएंगे,
हर पीड़ित को इंसाफ दिलाया है, तुम्हे भी दिलाएंगे।

देरी ही तो हुई है, इंसाफ तो सबको मिला है,
मां को न्याय तब मिला, जब बेटी ने भी झेला है।

उसे सज़ा कहेंगे और तुम्हे कहानी मानकर भुलायेंगे,
देरी के लिए खेद जताकर तुम्हे "देश की बेटी" बताएंगे।

(तुम्हे लड़की होकर लड़की कहलाने से डर लगता है,
आज़ादी है आज लेकिन हमे तिरंगा फहराने से डर लगता है।)

©Deepanshu
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