ये जो नाटक है, तुम्हे प्रेम करने का, तुमारी सुध लेने का, खेलने का मानाने का, अब समाप्त करना चाहता हूं बहुत जी लिया माया में, अब यथार्थ में जीना चाहता हूं ऐसा नहीं है की कुछ भी नहीं है थोड़ा तो था कुछ, आसक्ति या स्वार्थ प्रेम नहीं पनप पाया हमारे बीच क्योंकि तुमारा अहम मुख्य था सो रहा था मेरा स्वाभिमान और पुरुषार्थ अब शायद जाग गया हूं और समझ गया हूं। असत्य को त्याग बुरा ही सही पर सत्य जीना चाहता हूं। ये सारे आडंबर समाप्त करना चाहता हूं। ये जो ...........। ©mautila registan(Naveen Pandey) #ACT #love