मैं उतार फेकना चाहता हु वो सारे झुठे आवरण खुद से जो मुझे रोकती है मुझे , मैं बनने से मैं उतार फेकना चाहता हू वो चेहरे पर लगा वो नकली मुखोटा जो दुनिया देखना चाहती है हमेसा मेरे चेहरे पर वो मुखोटा दुनिया को भले ही अच्छी लगती हो मगर मुझे तकलीफ देती है मैं उतार फेकना चाहता हू वो धूल की तरह जमा मुझ पर वो सब कुछ जो मुझे नही पसन्द आखिर कब तक मैं उनके मन की करू आखिर कब तक मैं खुद को मैं बनने से रोकू उनके लिये जो मुझे, मुझसे प्यार करके मुझे ही बदलना चाहते है मैं उतार फेकना चाहता हु वो सारे झुठे आवरण खुद से जो मुझे रोकती है मुझे , मैं बनने से मैं उतार फेकना चाहता हू वो चेहरे पर लगा वो नकली मुखोटा जो दुनिया देखना चाहती है हमेसा मेरे चेहरे पर