श्वेत-पट्ट की निर्मल काया, प्रेम-पक्ष की गहरी माया, हर तृष्णा की संतुष्टी, हर प्रेम में उपजे तेरा साया! तू मुग़लों की कल्पना नही, फिरदौस से अस्तिव में आया है, तुझे प्रेम का प्रतीक बनाकर, परमात्मा ने धरा पे उतारा है! क्या खूब होता है नज़ारा, जब तेरा तासीर दिखाई देता है, तबस्सुम पा लेता हूँ, और एक तराना बहने लगता है!! ज़िन्दगी की कश्मकश में , अजब का तू एक रूप है, मेरा दस्तूर यही कहता है, की तुझे तस्लीम दूं, तू प्रेम का स्वरूप है!! "TAJ" The TAJ