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माथे की बिंदिया से लेकर पैरो की पायल ने जब भी तुझे

माथे की बिंदिया से लेकर पैरो की पायल ने जब भी तुझे पुकारा था,
कुछ इस कदर तूने मेरी रूह को संवारा था,
हजारो की भीड़ में बस एक तू ही हमारा था,
अंधेरी रातो में भी तू बना कभी सहारा था,
एक पल के लिए जुदा होना भी न तुझको गवारा था,
इश्क के खेल में फिर क्यों बन गया बेचारा था!

©Leena Batra
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