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फसी शिव की जटा में, निकली अपनी धारा में हिमालय की

फसी शिव की जटा में, निकली अपनी धारा में
हिमालय की गोद से निकली, अनेक चोट खाई
लोगों के पाप धोई, फिर खुद गंदी हो गई
खुद गंदा कहते, खुद गंदा करते
अनेक अभियान चलाते, फिर से इसे स्वच्छ बनाते 
ऐ जल तेरी पीड़ा न जाने कोई
कभी उसमें विष मिलाते, कभी अमृत बनाते
उसे तो दो हिस्सों में बांट जाते
मंदिरा बन लोगों की होठों को चुमती
फिर खुद बदनाम हो जाती
ऐ जल तेरी पीड़ा ना जाने कोई
अश्रु बन हमारे नैनो से छलकती
फिर अपना अस्तित्व ही खो देती
बादल बन सबको है हंसाती
बूंद बंद जब पृथ्वी को साफ नहीं कर पाती
हंसते हुए तबाह हो जाती
ऐ जल तेरी पीड़ा ना जाने कोई
अग्नि पर हर ताप को सहती
पूस दिनों में बर्फ भी बन जाती
रजनी के अंधेरे में ओस बन, तेरे पैरों को भी सहलाती
एजल तेरी पीड़ा न जाने कोई #Beauty