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ना जाने ढूंढता है क्या, पता किसका लिए फिरता मुसा

  ना जाने ढूंढता है क्या, पता किसका लिए फिरता
मुसाफिर कोई भी देखा भटकता ही मिला हमको

उतरकर रूह में जो इश्क़ करने के दावे बहुत करता
कि आशिक़ कितने देखे हैं बहकता ही मिला हमको

बताओ किस तरह कह दें सुकूं है इस मोहब्बत में
दिलों को हमने देखा है चटकता ही मिला हमको

©kalpana Maurya
  #poetrydaily