गीत :- अगर साथ दो आशियाना बना लें । तुम्हें ज़िन्दगी का तराना बना लें ।। अगर साथ दो आशियाना.... कदम दो चलो जो सनम अब हमारे । हँसी आज मौसम हमें है पुकारे ।। तुम्हें देखते ही ढ़ले शब हमारी । यही कह रही है वफ़ा की खुमारी ।। चलो आज ऐसा जहाँ हम बना लें । अगर साथ दो आशियाना बना लें ।। किसी और से अब नही आरजू हो । तुम्हीं ज़िन्दगी की रही जुस्तजू हो ।। तुम्हारे बिना तो कहीं भी हमारा । नही इस जहाँ में सुनों अब गुजारा ।। बुला आज काजी वसीयत करा लें । अगर साथ दो आशियाना बना लें ।। यही बाँह थामे सफ़र खत्म कर दूँ । तुम्हारे लिए हद सभी पार कर दूँ ।। मिला दे खुदा बस यही इल्तिजा है । तुम्हीं में हमारी बसे देख जाँ हैं ।। तुम्हीं को कहो आज दर्पण बना लें । अगर साथ दो आशियाना बना लें ।। अगर साथ दो आशियाना बना लें । तुम्हें ज़िन्दगी का तराना बना लें ।। २९/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अगर साथ दो आशियाना बना लें । तुम्हें ज़िन्दगी का तराना बना लें ।। अगर साथ दो आशियाना.... कदम दो चलो जो सनम अब हमारे । हँसी आज मौसम हमें है पुकारे ।। तुम्हें देखते ही ढ़ले शब हमारी । यही कह रही है वफ़ा की खुमारी ।।