प्रतिशोध की ज्वाला में जलने लगा शहर ये चेहरे पे कई चेहरों में पहचान खो गई है इंसानियत भी हिन्दू मुसलमान हो गई है लहुलूहान हो गयी है पत्थर की बारिशों से फूलों के शहर की गलियां वीरान हो गई है। प्रीति. #पत्थरबाजी#