वेदव्यास जी ने वेदों का भाष्य किया 18 पुराण लिख डाले कितने ही उपनिषद लिख डाले फिर भी मन को शांति नही मिली जो चाहते थे वैसा हो नही रहा था हर विषय पर लिखा जो आजतक सटीक लगता है फिर भी मन व्यथित आखिर में हरि इच्छा से एक श्लोक लिखा"परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीड़नम" जो वेदों,पुराणों,उपनिषद, गीता, धर्म,कर्म,ईश्वर का सार है जब हम कोई सद्कर्म करते है तब जो आनन्द की अनुभूति होती है वह अनुभूति ही ईश्वर के होने का प्रमाण है तभी उसे सत चित्त आनन्द सश्चितानन्द कहते है मोहन मिश्र जय हो सार