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बिखरा बिखरा मन का कमरा.. उम्मीदों के कपड़ों को त

 बिखरा बिखरा मन का कमरा..

उम्मीदों के कपड़ों को तह करना बाकी है ..
सपनों के काग़ज़ सहेज कर रखना बाकी है ..
दीवारों पर रिश्तों के सीलन सहेजती तस्वीरें ,
तस्वीरों पर जमी याद की धूल झाड़ना बाकी है ..
मन का वो  कोना जो हरदम से ही मेरा था ,
उस धुँधले कोने पर पड़े जाले उधेड़ना बाकी है ..
किताबों में संभाल कर रक्खी मोर-पंखियाँ,
कुतरे पन्नों को सहेज किताब सजाना बाकी है ..
फर्श पर बनी अतीत के धब्बों की कलाकारी ,
झाड़ पोंछ कर धब्बों की रंगोली रंगना बाकी है ...
दरवाजे  के पर्दे  बेसुध टँगे बेचारे धुलियाए ,
सांकल से लिपटा बरसों  का जंग निकालना बाकी है 
कोई अचानक यूँ ही ना मन के कमरे में आ जाए ..
बिखरे मन के कमरे में अभी ...
ख़ुद मेरा होना बाकी है ...

©Nalini Tiwari
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