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नींदें आई थी मगर नींदें आई नही, पलक अधखुली मैंने

नींदें आई थी 
मगर नींदें आई नही,
पलक अधखुली 
मैंने जगाई नही,
कि....थकन को जी रही मैं अलसाई रही,
उधड़ी सिलवटें मैंने सजाई नही..........

झाँका ओट से....
झरोखों से निहारा भी,
सब श्वेत...श्यामल स्याह मैं...लजाई नही....

पसरी रही
वो स्याह सन्नाटे 
वहीं पहरो तलक,
लसरा रहा टीका....कि लगाई नही,
उधड़ी सिलवटें मैंने सजाई नही..........

कि.........
मुझमें ही ढला था 
और मुझमें ही जला था,
वो दिवा भी सांझ प्रिया संग मिलन को चला था,
कि.......यूं मिलन की बात 
विरहन को सुहाई नही,
उधड़ी सिलवटें मैंने सजाई नही..........
                             @पुष्पवृतियां








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©Pushpvritiya #विरहन 
नींदें आई थी मगर नींदें आई नही,
पलक अधखुली मैंने जगाई नही,
कि....थकन को जी रही मैं अलसाई रही,
उधड़ी सिलवटें मैंने सजाई नही..........

झाँका ओट से....झरोखों से निहारा भी,
सब श्वेत...श्यामल स्याह मैं...लजाई नही....
pushpad8829

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#विरहन नींदें आई थी मगर नींदें आई नही, पलक अधखुली मैंने जगाई नही, कि....थकन को जी रही मैं अलसाई रही, उधड़ी सिलवटें मैंने सजाई नही.......... झाँका ओट से....झरोखों से निहारा भी, सब श्वेत...श्यामल स्याह मैं...लजाई नही....

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