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अनिल! अजीब है यह ज़माना भी पिंजरबद्ध कर दिया पक्षी

अनिल! अजीब है यह ज़माना भी
पिंजरबद्ध कर दिया पक्षी को और 
कहता है चिड़िया तुम स्वतंत्र हो..

मेरे गर्भ में सृजन शक्ति की सत्ता 
निकलकर जिस्म से बाहर अब वें
बिन सलाह और सहमति लिए मेरी
मर्यादाओं की तिलियो से निर्मित करें
मेरे लिए सामाजिक पिंजरा..क्यों?

भिन्न-भिन्न किरदारों के निर्वहन में
याद करने पर भी याद नही है यारों
कौनसा स्वप्न कब क़ब्र दफ़न हुआ?

संतान का रक्षण-पोषण भी करूं
पर कलेजा फट कर बाहर आ जाता
नालायक संतान सवाल पर सवाल करे
अरे माँ! हमारे लिए तुमने क्या किया?

रामराज्य की परिकल्पना लिए हर्षित
हरेक सदस्य दीपक जलाकर खुश थे
हृदय में घबराकर विचार गहराया मेरे
सीता की फिर से अग्नि परीक्षा नही हो
और परीक्षा-परिणाम का फरमान भी
ओह! कहीं मुझको अपवित्र न ठहरा दे..

अब मत कहना, नारी तुम श्रद्धा हो!
तुम्हारे इस तारीफ- पुल के नीचे देखा 
मतलब की सरिता प्रवाहित रहती है..

©Anil Ray #Anil_Ray