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Anil Ray
आशाओं की चादर ओढ़कर माता-पिता ने नन्हें हाथों में मुझको दे दी कलम-किताब.. एक लौ-सी जगमगाई घर में विस्तृत हो गयी शिक्षा रोशनी खुशी लहर से उम्मीद बादल कब कामयाबी की बारिश कर दे और सब सदस्य करते रहे इंतजार.. यह सारा प्रयास नन्हें पौधे को सींचकर विशाल वृक्ष में बदलने का जो हरा-भरा रहकर फल-छाया दे सबको.. नन्हें हाथों में कलम देने का परिणाम सकारात्मक और सुंदर रहा दोस्तों! दिल में मोहब्बत का पैगाम लिए वों हाथ कभी हथियार की ओर नही गये.. ©Anil Ray #Anil_Ray
Anil Ray
बेशक जिंदगी एक जंग है अनिल पर मैंने गुजारना नही जीना सीख लिया है.. फूलों की खूश्बू मुबारक हो तुमको मैं मालिन हूँ बीज को सींचना सीख लिया है.. ©Anil Ray #Anil_Ray
Anil Ray
ग़र मोहब्बत होती तुझे भी मुझसे समझते खामोश लबों की जुबां को.. यूं ही नही सजती महफ़िल गीत से लब से आज़ाद कर दो अल्फ़ाज़ो को.. ©Anil Ray 🤔🤔💕"मैं पसंदीदा हूँ.."💕🤔🤔 अब ख्वाहिशों का ख्याल कहाँ यारो अपनी कुछ ख्वाहिशों पर 'शर्मिन्दा' हूँ.. इश्क़लता से टूटा और मुरझाया फूल
🤔🤔💕"मैं पसंदीदा हूँ.."💕🤔🤔 अब ख्वाहिशों का ख्याल कहाँ यारो अपनी कुछ ख्वाहिशों पर 'शर्मिन्दा' हूँ.. इश्क़लता से टूटा और मुरझाया फूल
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दर्द देकर इंतहान मत लो जिंदगी अनिल जानता है मेरी मौत मंजिल है.. दर्दे-दिल को कितना ज़ख्म दोगे नया दर्द पुराने दर्द में 'दवा' काबिल है.. ©Anil Ray 💞💞 समझा प्रेम की पीर 💞💞 जाना है तो अभी जाओ तुम अब अनिल! ठहरा एक फ़कीर... मिट जायें मिट्टी-सी जो रेखा नही चाहिए प्रीत की ऐसी लकीर..
💞💞 समझा प्रेम की पीर 💞💞 जाना है तो अभी जाओ तुम अब अनिल! ठहरा एक फ़कीर... मिट जायें मिट्टी-सी जो रेखा नही चाहिए प्रीत की ऐसी लकीर..
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अनिल आरज़ू इश्क़ इबादत में यही है यार जिस्म मिटाकर रूहानी रूह रूह में समा जाये.. ©Anil Ray 💞तेरे साथ-साथ चलना चाहता हूँ💞 मैं नफरत जहां को, बदलना चाहता हूँ हाँ! इसको प्यार में बदलना चाहता हूँ। अकेला आया और अकेले ही जाना है मेरे स्वजनों के रंग में ढलना चाहता हूँ।
💞तेरे साथ-साथ चलना चाहता हूँ💞 मैं नफरत जहां को, बदलना चाहता हूँ हाँ! इसको प्यार में बदलना चाहता हूँ। अकेला आया और अकेले ही जाना है मेरे स्वजनों के रंग में ढलना चाहता हूँ।
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अनिल! अजीब है यह ज़माना भी पिंजरबद्ध कर दिया पक्षी को और कहता है चिड़िया तुम स्वतंत्र हो.. मेरे गर्भ में सृजन शक्ति की सत्ता निकलकर जिस्म से बाहर अब वें बिन सलाह और सहमति लिए मेरी मर्यादाओं की तिलियो से निर्मित करें मेरे लिए सामाजिक पिंजरा..क्यों? भिन्न-भिन्न किरदारों के निर्वहन में याद करने पर भी याद नही है यारों कौनसा स्वप्न कब क़ब्र दफ़न हुआ? संतान का रक्षण-पोषण भी करूं पर कलेजा फट कर बाहर आ जाता नालायक संतान सवाल पर सवाल करे अरे माँ! हमारे लिए तुमने क्या किया? रामराज्य की परिकल्पना लिए हर्षित हरेक सदस्य दीपक जलाकर खुश थे हृदय में घबराकर विचार गहराया मेरे सीता की फिर से अग्नि परीक्षा नही हो और परीक्षा-परिणाम का फरमान भी ओह! कहीं मुझको अपवित्र न ठहरा दे.. अब मत कहना, नारी तुम श्रद्धा हो! तुम्हारे इस तारीफ- पुल के नीचे देखा मतलब की सरिता प्रवाहित रहती है.. ©Anil Ray #Anil_Ray
Anil Ray
पिता को मुखाग्नि देकर घर आयी बेटी छुपाएं आंसू और माँ के आँसू पोंछकर कहा माँ चुप हो जा अभी जिंदा हूँ मैं.. ग़र घर में बेटा होता माँ चाहें जितना भी होता काबिल पर वह बेटी तो नही हो सकता 'बेटी' ही नही माँ 'बेटा' भी हूँ मै.. सिर पर रस्म पगड़ी की नही काबिलियत पर जिम्मेदारी ताज पिता का आदर्श और आशीर्वाद है गर्व करेगा जहां 'माँ' तेरी बेटी हूँ मै.. ©Anil Ray 💗💗 "बेटी बेटों से कम नही" 💗💗 यूं मत देखों! अनिल मुझको तुम मेरे किरदार और कहानी की लेखक खुद हूँ.. जब चाहे विषय बदल लिया जाये अमिट स्याही की मज़बूत-सी सुंदर कलम हूँ..
💗💗 "बेटी बेटों से कम नही" 💗💗 यूं मत देखों! अनिल मुझको तुम मेरे किरदार और कहानी की लेखक खुद हूँ.. जब चाहे विषय बदल लिया जाये अमिट स्याही की मज़बूत-सी सुंदर कलम हूँ..
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समस्त पहचान का अस्थायी अस्तित्व नाम-रूप तक भी माता-पिता द्वारा पाया.. क्या था मुझमें मेरा कुछ भी नही यार तुझसे मिलन में मेरा 'मैं' भी जैसे खो गया.. पूछना खुदा से मेरी 'तड़फ' को तुम क्यों कोई मुझसे मिलकर भी जुदा हो गया.. बनाकर परी पर कतरे गये बंदिशों में चारों ओर दीवारों से मर्यादा महल हो गया.. पाक इबादत इश्क़ में खुदा समझा था और देखो अब वो खुदा भी पत्थर हो गया.. अनिल अनल जलाती है मेरी रूह तक क्यों जिस्म -टुकड़ों का समाज भिन्न हो गया.? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 विवाह एक नापाक गठबंधन है चाहे इसे जो नाम दे कोई ? इसका जन्म नेकनीयत की भावना से नहीं बल्कि सुरक्षा के मद्देनजर हुआ है और प्रत्येक सुरक्षा अनिवार्यतः गुलामी को जन्म देती है। किसी ने कहा : विवाह एक संस्थागत वेश्यावृत्ति है, उस बात पर सोचते हुए आया ख्याल। संस्थागत वेश्यावृत्ति हो न हो संस्थागत शोषण तो है ही इसमें कोई शक नहीं। जैसे अकर्मण्य व्यक्ति को भोजन की गारंटी आकर्षित करती है, ठीक उसी तरह नाकाबिल पुरुषों को विवाह की व्यवस्था आकर्षित करती है। इस गठबन
विचारार्थ लेखन.................✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 विवाह एक नापाक गठबंधन है चाहे इसे जो नाम दे कोई ? इसका जन्म नेकनीयत की भावना से नहीं बल्कि सुरक्षा के मद्देनजर हुआ है और प्रत्येक सुरक्षा अनिवार्यतः गुलामी को जन्म देती है। किसी ने कहा : विवाह एक संस्थागत वेश्यावृत्ति है, उस बात पर सोचते हुए आया ख्याल। संस्थागत वेश्यावृत्ति हो न हो संस्थागत शोषण तो है ही इसमें कोई शक नहीं। जैसे अकर्मण्य व्यक्ति को भोजन की गारंटी आकर्षित करती है, ठीक उसी तरह नाकाबिल पुरुषों को विवाह की व्यवस्था आकर्षित करती है। इस गठबन
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जर्जर खंडहर तन चीथड़ों में बिखरा हुआ है इंतजार में तुम्हारे.. कभी आकर तो देखो यार! काया-हवन 'मोहब्बत' में तुम्हारे.. ©Anil Ray 💕💕 लौट आओं न तुम 💕💕 समय बदलता गया धीरे-धीरे और संग में कमबख़्त वों भी.. इश्क़-ए-मौसम मटमैला-सा है नफ़रत-ए-ज़हर की आंधियों में जिंदगी तन्हाइयों से तंग आकर
💕💕 लौट आओं न तुम 💕💕 समय बदलता गया धीरे-धीरे और संग में कमबख़्त वों भी.. इश्क़-ए-मौसम मटमैला-सा है नफ़रत-ए-ज़हर की आंधियों में जिंदगी तन्हाइयों से तंग आकर
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दृश्य स्वरूप से परे, मेरा एक निजस्वरूप भी है हजारों वस्त्र तन के लिए पर नजरदोष का क्या? कुदरत से प्राप्त कुदरती जिस्म अनमोल है मेरा तुम्हारा वजूद भी मिटेगा खुद को मिटा दूं क्या? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻 "सर! उस साली के बहुत पंख निकल आए हैं। कहती हैं मैं औरों के जैसी नहीं हूँ ... अजीब गंदी औरत है जो साफ होने की नौटंकी करती है।" "उसके खिलाफ़ कोई शिकायत है क्या ?" "नहीं, पर कागजों में शिकायत दर्ज़ करने में कितना समय लगता है भला , निकाल बाहर कीजिये साली को । ऐसी पता नहीं कितनी प्रोफेसर लाइन में लगी मिल जाएंगी।"
विचारार्थ लेखन.................✍🏻 "सर! उस साली के बहुत पंख निकल आए हैं। कहती हैं मैं औरों के जैसी नहीं हूँ ... अजीब गंदी औरत है जो साफ होने की नौटंकी करती है।" "उसके खिलाफ़ कोई शिकायत है क्या ?" "नहीं, पर कागजों में शिकायत दर्ज़ करने में कितना समय लगता है भला , निकाल बाहर कीजिये साली को । ऐसी पता नहीं कितनी प्रोफेसर लाइन में लगी मिल जाएंगी।"
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