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क्या ये दीपों की दिवाली है? नहीं, ये है दीपों की क

क्या ये दीपों की दिवाली है?
नहीं, ये है दीपों की काली राख है,
ये है गरीबों के उम्मीदों का लाह,
नहीं जला पाए जो चूल्हा,क्या वो दीप जलाएंगे,
हंसी-खुशी की लीपा-पोती कैसे सह वो पाएंगे,
मिठाई के रस का स्वाद कैसे ले पाएंगे,
जो दूसरों के घर की चमक देखकर खुद भी खुश हो जाते हैं,
उन्हें क्या कपड़े और क्या साज श्रृंगार, उन्हें न खरीद पाएंगे,
जो है केवल प्रेम के प्यासे,सोमरस ना भाएंगे ,
देश क्या देख रहा है? आखिर देश जगमगा रहा है,

 देश जगमगा रहा है
क्या ये दीपों की दिवाली है?
नहीं, ये है दीपों की काली राख है,
ये है गरीबों के उम्मीदों का लाह,
नहीं जला पाए जो चूल्हा,क्या वो दीप जलाएंगे,
हंसी-खुशी की लीपा-पोती कैसे सह वो पाएंगे,
मिठाई के रस का स्वाद कैसे ले पाएंगे,
जो दूसरों के घर की चमक देखकर खुद भी खुश हो जाते हैं,
उन्हें क्या कपड़े और क्या साज श्रृंगार, उन्हें न खरीद पाएंगे,
जो है केवल प्रेम के प्यासे,सोमरस ना भाएंगे ,
देश क्या देख रहा है? आखिर देश जगमगा रहा है,

 देश जगमगा रहा है