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धूंध के बीच इक किरण रौशनी फैंक रही है देख कर बादलो

धूंध के बीच इक किरण
रौशनी फैंक रही है
देख कर बादलों में
खलबली मच रही है
रौशनी अपनी जगह
बनाते जा रही है
लोगों को अपने आगोश
में ले रही है
लोग कदम से कदम
बढ़ाते जा रहे हैं
अंधकार माजरा देखकर 
डर रहा है
खैर उसकी नहीं
उसको महसूस हो रहा है
कुल समय का है खेला
कभी रौशनी
कभी अंधेरा
अंधेरे की अब 
उम्र हो चली है
समय रौशनी की तरफ
करवट ले चुकी है
छोड़ दो अब निराशा
बढ़ चलो अब सब
रौशनी की दिशा
अंधकार तुमको डरायेगा
अंधकार धमकायेगा
बिलकुल ना घबराना
रौशनी साथ 
कदम से कदम को मिलाना
मिल जायेगी मन्जिल
मिल जायेगी जन्नत|

©vs dixit
  #रौशनी