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vsdixit4430
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vs dixit

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vs dixit

पलटा पलटी 
....….......................
चवन्नी पलटती तो है
मगर उसकी 
कुछ कीमत  होती है...

नेता पलटता है तो
वो सिर्फ पलटता ही नहीं
खुद को लोगों की 
नजरों से भी गिरा लेता है
लोगों की आशाओं को 
अचानक जमीन में
सौ गज नीचे गाड़ देता है...

क्या मजबूरी है?
जो आजकल
नेता ही नहीं 
उनके आचार विचार भी
रातों रात पलट जाते हैं
जनता के प्रति जिम्मेदारी
भूल जाते हैं
जिनके वोट लेकर जीतते हैं
उन्हीं को धोखा दे देते हैं...

नेता बेशर्म होकर 
खुद को पलट कर
मंच पर
पटका पहनकर 
दांत निपोरता है
सब राष्ट्र की खातिर
उसकी इमानदार कोशिश है
ऐसा कहता है
कुछ तो मजबूरी है
जनता का क्या
वो तो बेचारी है...

रातों रात पलट कर 
भ्रष्ट भी बन जा रहे इमानदार 
कह रहे
करेंगे इमानदारी से 
देश की सेवा और रखवाली
पता नहीं कौन सी 
ऐसी वाशिंग मशीन है निराली...
@वीएस दीक्षित

©vs dixit
  #पलटापलटी
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vs dixit

तमाशा
............
तमाशा बनाना
तमाशा बनना
तमाशबीनों का होना
तालियों का गरजना
तमाशे पर थिरकना
सब तमाशा है
दरअसल तो कुहासा है
झूठा दिलासा है
दीवारों पर तो साफ साफ लिखा है
लोग पढ़ना ही भूल सा गया है
आंखों पर पट्टी बांध लिया है
मुंह सी लिया है
केवल तमाशा ही तमाशा है |
V.s. Dixit

©vs dixit
  #तमाशा
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vs dixit

सामने से गुजरती हुई लहरों
को देखकर लगता है 
कि कभी बड़ी पहचान थी इनसे
बेरूखियां इनकी सावधान सी
करती हैं किसी बड़ी सुनामी से
यह कोई महज इत्तेफाक नहीं
हर बार की हकीकत है।

©vs dixit
  #बेरुखी
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vs dixit

#शब्द
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#लहरें
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#बात
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#assikisham
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vs dixit

नारी और उसका मर्म
नहीं जानता कोय
यत्र तत्र नारी दुर्दशा
की घटनायें होती रहती हैं
पर वो चुप रह जाती हैं
पता है क्यूँ?
क्योंकि उन्हें पता है
सिस्टम  उनके साथ
कभी खड़ा नहीं होगा
उनके साथ दुर्ब्यवहार
का दोष उन्हीं पर
किसी ना किसी तरीके से 
चिपका दिया जायेगा
तरह तरह की कहानियां
गढ़ दी जायेंगी
क्योंकि लाख पूजा करने
और सम्मान देने की
नौटंकी समाज  करे
औरत को वह हमेशा 
बेचारी और कमजोर ही समझता है
औरत चाहे जो मुकाम
हासिल कर ले
समाज उसको कमजोर
औरत ही समझता है
समाज में पूरा तंत्र शामिल है
जिसको औरत की बेबसी
और क्रंदन सुनाई नहीं देती
कोई महिला जब अपने साथ हुये
अत्याचार के खिलाफ बोलती है
तो मर्द और उसका तंत्र
उस पर टूट पड़ता है
अन्त में औरत टूट जाती है
अपने को मर्दवादी 
भीड़ में अकेली पाती है
मर्द और उसका तंत्र
अठ्ठहास करता
और ताल ठोंकता हुआ मिलता है
औरत अपने अपमान के आंसू
पीकर देवी बनी रह जाती है
मर्द का अठ्ठहास जारी रहता है
हर बार यही कहानी 
दुहराई जाती है
क्योंकि समाज और तंत्र की सोच
 सिर्फ और सिर्फ मर्दवादी है
नजरिये में बदलाव की
सख्त जरूरत है|
V.s. Dixit

©vs dixit
  #मर्दवादीसमाज
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vs dixit

शहीद
............

घर से निकलकर 
छोड़कर 
पत्नी बच्चों का प्यार
परिवार का दुलार
खेत और खलिहान।

जाने को तैयार
बहुत दूर सीमाओं पर
देश की रक्षा करने हमारे जवान
जो नहीं सोचते दिन और रात
रखते हैं वतन को महफूज।

वतन ही उनका मजहब 
वतन ही उनका ईमान
न्यौछावर करते हैं अपनी जान
करते दुश्मन से दो दो हाथ
जब खतरे में हो हिन्द।

सीने पर गोली खाकर
देते हैं देश को सुकुन की नींद
कहलाते हैं वो शहीद
ऋणी है सारा देश
करता उनको सलाम 
मानता अपना अभिमान।
©vsdixit

©vs dixit
  #शहीद
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vs dixit

चक्रब्यूह
.............

दिनों दिन बुनते  हुए सपने
बढ़ती हुई अभिलाषायें
और उड़ान की चाहत
के बीच उतरती चढ़ती
मानव की मन: स्थिति
कभी कभी ऐसी फंस जाती है
जैसे हो मकड़ी 
के जाले बीच  
अंधकार से भरे
चक्रब्यूह में
बेचैन, भटकता 
उस चक्रब्यूह को 
तोड़ने की जितना
कोशिश करता है
फंसता ही चला जाता है
हजार कोशिशें करता है
पर निकलने में 
नाकाम रहता है
बस फंसता ही चला जाता है
अन्त में 
थक हार कर 
अपने को छोड़ देता है
सारी इच्छाओं को
छूटते देखता हुआ 
ठगा सा 
छटपटाता हुआ
समर्पण कर देता है
सदा के लिए सो जाता है
अंधेरे चक्रव्यूह में  
समा जाता है|
@वीएस दीक्षित

©vs dixit
  #चक्रव्यूह
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