vbgpoemsworld अकेले ही घरसे निकलता हु आजकल, गाडी करता हु पार्क मेट्रो पकडता हु आजकल भिड ही भिड में होता हु खडा, बहोत एकेला मेहसुस मैं करता हु आजकल न जाने कितने आईनो में देखता हु चेहरा अपना, अजनबी खुदीको मैं लगता हु आजकल ये कोशिशे मेरी जो तुझे पाने की है, चाहत जो मेरी हद से गुजर जाने की है, रात दिन चल रहा जिस लगनसे मै जो हु, रस्ता देख रही है मेरा मंजिले आज कल.. खुशी इस बात की है जल रहा है मुझसे सुरज और डर रहा है अंधेरा, वक्त भी मेरे साथ चल रहा है आजकल.. आखोकी की भी ऐसे किस्मत बदली है, जो देखा सपना हो रहा है हकिकत आजकल ©Vinod Ganeshpure #Nojoto #vbgpoemsworld #delhi #metro #hindi #poem