सरोवर की स्वच्छ पारदर्शि सतह पर. ज़ब मैंने देखा अपनी मछली नुमा रंगीन कविता को तैरते हुए उसकी सुंदरता क़े बिल्लोरी अस्तित्व का आंकलन करना मुझे बेहद अच्छा लगा था पर सरोवर क़े तट पर जहां मैं खड़ा था उसी कविता क़े शब्दों ने मुझ पर सहसा अघोषित असक्रमण कर दिया क्योंकि मैं गुनहगार था उनका मैंने शब्दों को छंद मे तब्दील करने का दुस्साह ज़ो किया था जबकि वे शब्द. किसी भी अनुभूति से प्रेरित भी नहीं थे ©Parasram Arora शब्द बनाम छंद