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*रुक जाना नहीं तू कहीं हार के* हमारी गाड़ी आज काफ

*रुक जाना नहीं तू कहीं हार के*

हमारी गाड़ी आज काफी दिनों के बाद बंदिशों से बाहर शहर की चौहद्दी देख रही थी। हल्की हल्की बारिश और कुहासे के बीच राहे उल्फत में हवा के परों पर सवार हम "सिटी ऑफ जॉय " का आनंद ले रहे थे। कोरोना काल की मार झेल चुके इस शहर ने अपने को पुनर्स्थापित करने की कोशिश शुरू कर दी थी, बाजार अपनी पुरानी रौनकों की ओर लौटने को आतुर था,हुगली तट पर नावों की आवाजाही सहसा हमारे बचपन के उन दिनों की याद दिला रही थी जब गलियों में जमे पानी के बीच हमारी कागज के नावों की रेस हुआ करती थी। उस समय कागज के दो टुकड़े खुशी के लिए काफी होते थे,आज शहरी चकाचौंध और ऊँची इमारतों की रोशनी में वजूद खोया खोया सा महसूस होता है। फिर भी हुगली तट पर हमारा उत्साह मानो लहरों पर तैर सा रहा था, और क्यों ना हो? काफी लंबे अरसे के बाद मन विचलित होकर बाहर की सैर को निकला था। हमारी गाड़ी कुछ समय के लिए वहां रुकी थी। चेहरे पर मास्क और बिना मास्क लगाए सेल्फी का जुनून युवाओं के बीच इस कदर चढ़ा था मानों कैद से रिहा हो कर आए हों। एक लंबे अरसे के बाद भी मास्क और मुस्कान की जंग जारी थी और एक बार फिर से जिंदगी जीने की तैयारी थी। अंगीठी में कोयले पर तपते गर्म भुट्टे जहां मन में गर्मजोशी पैदा कर रहे थे वहीं कुल्हड़ वाली गर्म चाय की चुस्की जिंदगी में फिर से मिठास घोलने को तैयार थी। हमारी गाड़ी तनिक विश्राम के पश्चात् वहां से वापस सड़क पर आगे की ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रही थी। मौसम का मिजाज तो वैसे ही कुछ बदला बदला सा नजर आ रहा था, गाड़ी के वाइपर्स, स्टीयरिंग से ज्यादा भूमिका अदा कर रहे थे। धुंधली रोशनी के बीच हमारा सफर आगे बढ़ा जा रहा था, सब्जियों और फल के ठेले लिए व्यापारी इस बारिश में आशा की लौ लिए ग्राहकों की राह तक रहे थे। शहर के मॉल में एक अलग सी वीरानगी थी,रेस्टोरेंट में लोगों की बैठकी मना थी पर "सिटी ऑफ जॉय" की भीगी सड़कों पर टोमैटो से ज्यादा "जोमैटो" नजर आ रहे थे। कुछ लोग मास्क को दरकिनार कर हर फिक्र को धुएं में उड़ाते सार्वजनिक स्थल पर भी नजर आ रहे थे। शाम अब ढलने को थी, हमारी गाड़ी की रफ्तार जिंदगी की रफ्तार को छूने की कोशिश में लगी हुई थी। मंदिर में बजती घंटी और मस्जिद की अज़ान मानों शहर के पटरी पर लौटने का संदेश दे रही थी ।हम भी अपने घर पहुंचने को थे, बारिश थम सी गई थी, अब समय था थमी सी जिंदगी को एक नई ऊर्जा के साथ फिर से शुरुआत करने का क्योंकि "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा"। "दो बूंद जिंदगी के" बाद अब लोग "दो डोज वैक्सीन" की तालीम पर अमल करने को विवश थे और क्यों ना हों? यहां "सौदा जिंदगी का" था, और हमे भी एक नई सुबह का इंतजार था, हमने भी चुपचाप गाड़ी का रेडियो चालू कर दिया और तभी किशोर कुमार द्वारा गाया गया और मजरूह सुल्तानपुरी का एक मशहूर नगमा बज उठता है " रुक जाना नहीं तू कहीं हार के"।

©Pravin Kumar Sinha #रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
*रुक जाना नहीं तू कहीं हार के*

हमारी गाड़ी आज काफी दिनों के बाद बंदिशों से बाहर शहर की चौहद्दी देख रही थी। हल्की हल्की बारिश और कुहासे के बीच राहे उल्फत में हवा के परों पर सवार हम "सिटी ऑफ जॉय " का आनंद ले रहे थे। कोरोना काल की मार झेल चुके इस शहर ने अपने को पुनर्स्थापित करने की कोशिश शुरू कर दी थी, बाजार अपनी पुरानी रौनकों की ओर लौटने को आतुर था,हुगली तट पर नावों की आवाजाही सहसा हमारे बचपन के उन दिनों की याद दिला रही थी जब गलियों में जमे पानी के बीच हमारी कागज के नावों की रेस हुआ करती थी। उस समय कागज के दो टुकड़े खुशी के लिए काफी होते थे,आज शहरी चकाचौंध और ऊँची इमारतों की रोशनी में वजूद खोया खोया सा महसूस होता है। फिर भी हुगली तट पर हमारा उत्साह मानो लहरों पर तैर सा रहा था, और क्यों ना हो? काफी लंबे अरसे के बाद मन विचलित होकर बाहर की सैर को निकला था। हमारी गाड़ी कुछ समय के लिए वहां रुकी थी। चेहरे पर मास्क और बिना मास्क लगाए सेल्फी का जुनून युवाओं के बीच इस कदर चढ़ा था मानों कैद से रिहा हो कर आए हों। एक लंबे अरसे के बाद भी मास्क और मुस्कान की जंग जारी थी और एक बार फिर से जिंदगी जीने की तैयारी थी। अंगीठी में कोयले पर तपते गर्म भुट्टे जहां मन में गर्मजोशी पैदा कर रहे थे वहीं कुल्हड़ वाली गर्म चाय की चुस्की जिंदगी में फिर से मिठास घोलने को तैयार थी। हमारी गाड़ी तनिक विश्राम के पश्चात् वहां से वापस सड़क पर आगे की ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रही थी। मौसम का मिजाज तो वैसे ही कुछ बदला बदला सा नजर आ रहा था, गाड़ी के वाइपर्स, स्टीयरिंग से ज्यादा भूमिका अदा कर रहे थे। धुंधली रोशनी के बीच हमारा सफर आगे बढ़ा जा रहा था, सब्जियों और फल के ठेले लिए व्यापारी इस बारिश में आशा की लौ लिए ग्राहकों की राह तक रहे थे। शहर के मॉल में एक अलग सी वीरानगी थी,रेस्टोरेंट में लोगों की बैठकी मना थी पर "सिटी ऑफ जॉय" की भीगी सड़कों पर टोमैटो से ज्यादा "जोमैटो" नजर आ रहे थे। कुछ लोग मास्क को दरकिनार कर हर फिक्र को धुएं में उड़ाते सार्वजनिक स्थल पर भी नजर आ रहे थे। शाम अब ढलने को थी, हमारी गाड़ी की रफ्तार जिंदगी की रफ्तार को छूने की कोशिश में लगी हुई थी। मंदिर में बजती घंटी और मस्जिद की अज़ान मानों शहर के पटरी पर लौटने का संदेश दे रही थी ।हम भी अपने घर पहुंचने को थे, बारिश थम सी गई थी, अब समय था थमी सी जिंदगी को एक नई ऊर्जा के साथ फिर से शुरुआत करने का क्योंकि "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा"। "दो बूंद जिंदगी के" बाद अब लोग "दो डोज वैक्सीन" की तालीम पर अमल करने को विवश थे और क्यों ना हों? यहां "सौदा जिंदगी का" था, और हमे भी एक नई सुबह का इंतजार था, हमने भी चुपचाप गाड़ी का रेडियो चालू कर दिया और तभी किशोर कुमार द्वारा गाया गया और मजरूह सुल्तानपुरी का एक मशहूर नगमा बज उठता है " रुक जाना नहीं तू कहीं हार के"।

©Pravin Kumar Sinha #रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
pravinkumarsinha6511

Pravin sinha

Bronze Star
New Creator

#रुक जाना नहीं तू कहीं हार के #ज़िन्दगी