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White मिज़ाज अपने कहाँ आज है ठिकाने पर हुजूर आए ह

White मिज़ाज अपने कहाँ आज है ठिकाने पर 
हुजूर आए हैं मेरे ग़रीब-खाने पर 

पिघल रही है मुसलसल जो बर्फ़ आँखों से 
अज़ीब धूप है पलकों के शामियानें पर 

न जाने आ गए क्यूँ उस की आँखों में आँसू 
जो हंस रहा था मिरे दर्द के फ़साने पर 

ज़रा सी सम्त बदल ली जो अपन मर्जी से 
तो नाव आ गई तुफ़ान के निशाने पर 

ख़ुदा बचा के रखे 'मीना 'उस घड़ी से हमें 
कि बात ठहरे कभी उस के आज़माने पर

           मीना नक़वी

©Nilam Agarwalla
  #गज़ल