कमी मुझमें है या उनके देखने के ढंग में, गूंगे हम हैं या बहरापन है उनके जिस्म में, ये इक सवाल है फिर से मेरे ज़हन में? के इश्क में है दोहरापन या रंगों और रूप के किरदार में! पत्ते तो बिछड़ते हैं शाखाओं से मौसम -ऐ - पतझड़ में, यंहा पतंगा भी तो है पहले से ही रौशनीओं के रूख़ में, ये इक सवालात है फिर से मेरे ज़हन में? के ये शायरीयां आदतन है मुझमें या शामिल है मेरे पागलपन में! ©NIDHI SINGH SONAM #Connection