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कहाँ गया वो ज़माना जब ख़त लिखा जाता था स्याही से प

कहाँ गया वो ज़माना 
जब ख़त लिखा जाता था स्याही से 
पानी पिया जाता था सुराही से 
जब मकान होते थे कच्चे 
जब रिश्ते होते थे सच्चे 
कहाँ गया वो ज़माना 
जब शाम भी सुबह सी लगती थी 
जब रातों मे भी इतना अंधेरा न था 
इरादे मजबूत हुआ करते थे 
मुसीबतों से यूँ ही निपट लेते थे 
तनाव का मतलब तो जैसे पता ही न था 
कहाँ गया वो ज़माना 
जब रिश्तो की कदर हुआ करती थी 
दिल मासूम हुआ करते थे 
इंसान को इंसान समझा जाता था 
रिश्तो को पैसो से नहीं तोला जाता था 
दूर रहकर भी सब पास हुआ करते थे 
कहाँ गया वो ज़माना 
जब खुद को समय दिया जाता था 
परायों को भी अपना बना लिया जाता था 
किसी की भी तकलीफ मे सब साथ हो जाते थे 
गम तो जैसे पास न आते थे 
कहाँ गया वो ज़माना 
जो फिर कभी शायद लौटकर नहीं आएगा 


      
        - काम्या #veins
कहाँ गया वो ज़माना 
जब ख़त लिखा जाता था स्याही से 
पानी पिया जाता था सुराही से 
जब मकान होते थे कच्चे 
जब रिश्ते होते थे सच्चे 
कहाँ गया वो ज़माना 
जब शाम भी सुबह सी लगती थी 
जब रातों मे भी इतना अंधेरा न था 
इरादे मजबूत हुआ करते थे 
मुसीबतों से यूँ ही निपट लेते थे 
तनाव का मतलब तो जैसे पता ही न था 
कहाँ गया वो ज़माना 
जब रिश्तो की कदर हुआ करती थी 
दिल मासूम हुआ करते थे 
इंसान को इंसान समझा जाता था 
रिश्तो को पैसो से नहीं तोला जाता था 
दूर रहकर भी सब पास हुआ करते थे 
कहाँ गया वो ज़माना 
जब खुद को समय दिया जाता था 
परायों को भी अपना बना लिया जाता था 
किसी की भी तकलीफ मे सब साथ हो जाते थे 
गम तो जैसे पास न आते थे 
कहाँ गया वो ज़माना 
जो फिर कभी शायद लौटकर नहीं आएगा 


      
        - काम्या #veins
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