इन काली अंधेरी रात में याद जब हम आपको आयेंगे अमावस की उस भयानक रात में आप चाह कर भी हमसे मिल नहीं पाओगे साँय-साँय करती उस रात में ख़ुद की साँसों को भी महसूस नहीं कर पाओगे मेरे बन्द पड़े अल्फ़ाज़ों को खामोशी का नाम ख़ुद दे जाओगे याद करो जब रो-रोकर मैं, अपनी तड़प आपसे कहता था उस वक्त बहरे आप बन जाते थे, पर पीड़ा मेरा गहरा था अब इस धरती पर मेरा जिस्म नहीं, दफ़न कब्र में सोया हूँ अब कब्र पे आकर क्या रोना, जिन्दा रहते तेरे प्यार में कितना रोया हूँ जब तब ना समझे तो अब क्या समझोगे पर लिखकर मैं कुछ छोड़ गया हूँ, क्या इसको समझ पाओगे कुछ अल्फ़ाज़ मेरे तुम याद रखना राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-1) भाग-1