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क़िस्मत नहीं, हमारी चाहत का असर था, जो होने था, वो

क़िस्मत नहीं, हमारी चाहत का असर था,
जो होने था, वो हमसे होकर गुज़रा था।

वक़्त की शाखों पर जो पत्ते झरे थे कभी,
वो फिर नई सुबह में मोहब्बत बनकर पिघला था।

तेरे बिना जो था खाली, वो तेरा ख्वाब बना,
वही ख्वाब अब हमारी हकीकत बनकर उभरा था।

रात में जो था नवनीत कभी अधूरा,
वो तेरे होने से अब रोशनी बनकर उजला था।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
क़िस्मत नहीं, हमारी चाहत का असर था,
जो होने था, वो हमसे होकर गुज़रा था।

वक़्त की शाखों पर जो पत्ते झरे थे कभी,
वो फिर नई सुबह में मोहब्बत बनकर पिघला था।

तेरे बिना जो था खाली, वो तेरा ख्वाब बना,
क़िस्मत नहीं, हमारी चाहत का असर था,
जो होने था, वो हमसे होकर गुज़रा था।

वक़्त की शाखों पर जो पत्ते झरे थे कभी,
वो फिर नई सुबह में मोहब्बत बनकर पिघला था।

तेरे बिना जो था खाली, वो तेरा ख्वाब बना,
वही ख्वाब अब हमारी हकीकत बनकर उभरा था।

रात में जो था नवनीत कभी अधूरा,
वो तेरे होने से अब रोशनी बनकर उजला था।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
क़िस्मत नहीं, हमारी चाहत का असर था,
जो होने था, वो हमसे होकर गुज़रा था।

वक़्त की शाखों पर जो पत्ते झरे थे कभी,
वो फिर नई सुबह में मोहब्बत बनकर पिघला था।

तेरे बिना जो था खाली, वो तेरा ख्वाब बना,