(प्यार का मायाजाल) न जाने कैसा ये दिन आ गया हैं, विश्वास के बदले न विश्वास रह गया हैं। आई थी छोड़ परिवार को तुम्हारे पास में, पर क्यों तब्दील कर दिया तुमने ही उसे लाश में। क्या दुनिया में इतनी अभद्रता बढ़ गई हैं, कि प्यार के भी सर क्रुरता चढ़ गई हैं। कभी लड़की को लड़का,कभी लड़के को लड़की, एक-दुसरे को मार दिखाते हैं अपनी तड़की-भड़की। किसी की बेटी और किसी का बेटा मारा जाता हैं, पर लोगों के मन केवल संस्कार दोष ही भर आता हैं। क्यों उन माँ-बाप के दुःखों को न कोई देख पाता हैं, सिर्फ जाति और चरित्र का भेद बतलाया जाता हैं। प्यार के बदले न आज प्यार रह गया हैं, बस 35 टुकड़ों का कारवां चल गया हैं। क्यों इतना आज ये प्यार गिर गया हैं, कि प्यार का मतलब सिर्फ आज हवस रह गया हैं। माँ-बाप की अवज्ञा करो न तुम ऐसे, वरना बचा पायेंगे वो तुमको दलदल से कैसे। माँ-बाप का वात्सल्य प्रेम हैं अनमोल यहाँ, वरना ऐसे प्यार तो मिल जाते हैं जहाँ-तहाँ। प्यार के नाम से आज लगने लगा हैं डर, क्योंकि पता नहीं किसके निकल आयेंगे 10-10 सर। बालिग़ों पर अभिभावकों का न अब कोई अधिकार रहा हैं, शायद इसीलिए आज सच्चा प्रेम विलुप्त हो रहा हैं। __राधा पान्डेय ©Radha Pandey #pyar_ka_mayajaal🥲