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"शाप" Part-1 बोलते हैं पशु पक्षी, अपने दिलों के घ

"शाप" Part-1 
बोलते हैं पशु पक्षी,
अपने दिलों के घाव दिखाते है।
इंसानों पर अपने पूर्वजों की,
मौत का इल्जाम लगाते हैं।
आंसू नहीं छिपते छिपाने से,
ज़ख्म नहीं भरते सहलाने से।
दे जाता हमें भी आकर कोई दवा,
हम भी जी पाते जमाने में।
मगर हमें दवा नहीं,
बन्दूक से निकली गोलियां मिली।
मरहम लगी पट्टी नहीं,
धनुष से निकले बाण मिले।
खुशनुमा जिन्दगी नहीं,
शरीर से निकले प्राण मिले।
हरे भरे जंगलों की चाहत थी हमें,
मगर हमें पूर्वजों की हड्डियों के शमशान मिले।
खुले आकाश की ऊंचाई चाहते थे हम,
वहां भी उंची इमारत और हवाई जहाज मिले।
एक कोना भी हमारे लिए नहीं छोड़ा।
प्रकृति का बिछौना भी हमारे लिए नहीं छोड़ा।
जिसे हम ओढ़ सकते, बिछा सकते,
बैठकर उस पर मुस्करा सकते।
                       VIKASH KAMBOJ "शाप"
"शाप" Part-1 
बोलते हैं पशु पक्षी,
अपने दिलों के घाव दिखाते है।
इंसानों पर अपने पूर्वजों की,
मौत का इल्जाम लगाते हैं।
आंसू नहीं छिपते छिपाने से,
ज़ख्म नहीं भरते सहलाने से।
दे जाता हमें भी आकर कोई दवा,
हम भी जी पाते जमाने में।
मगर हमें दवा नहीं,
बन्दूक से निकली गोलियां मिली।
मरहम लगी पट्टी नहीं,
धनुष से निकले बाण मिले।
खुशनुमा जिन्दगी नहीं,
शरीर से निकले प्राण मिले।
हरे भरे जंगलों की चाहत थी हमें,
मगर हमें पूर्वजों की हड्डियों के शमशान मिले।
खुले आकाश की ऊंचाई चाहते थे हम,
वहां भी उंची इमारत और हवाई जहाज मिले।
एक कोना भी हमारे लिए नहीं छोड़ा।
प्रकृति का बिछौना भी हमारे लिए नहीं छोड़ा।
जिसे हम ओढ़ सकते, बिछा सकते,
बैठकर उस पर मुस्करा सकते।
                       VIKASH KAMBOJ "शाप"