ना-समझ बनते हैं हद है पूछते हैं हमसे हुआ क्या मासूमियत उनकी बेहद है क्या बताएँ कैसे कहें कि जहाँ देखूँ उनकी ही ज़द है दिल गिरवी रखा तेरे नाम मेरी उल्फ़त की यही सनद है आते हैं चले जाते हैं आशिक़ हयात में मोहब्बत ही समद है ♥️ Challenge-635 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।