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वो बालपन की अटखेलियां , वो नन्हें नन्हें हांथों से

वो बालपन की अटखेलियां ,
वो नन्हें नन्हें हांथों से आंटे की बनती आकृतियां ,
किसी को सांप कहते तो किसी को हाथी घोड़ा,
वो बार बार पानी में छप छ्प करती हथेलियां ,
वो दादी को चिढ़ाता बचपन ,
तो कभी दादा के संग मुस्कुराता बचपन ,
कभी पापा के कंधे पर चढ़ जाता बचपन ,
तो कभी माँ के आँचल में छिप जाता बचपन ,
वो मामा के आँखों का तारा बचपन ,
 कभी हसता , कभी रुलाता , कभी दोस्तों संग खेलने लग जाता बचपन ,
नन्हे नन्हे कदमों से आँगन छलांग लगता बचपन ,
अपनी तुतलाती बानी से सबके मन को लुभाता बचपन ,
कभी खुद ही गिरता , खुद ही संभालता , 
सारे घर को सर पर उठाता बचपन ,
तप जाता अगर कभी बदन तो सबके आँखों में पानी लाता बचपन ,
अपनी पायल की छम छम से सबके मन को हरसता बचपन ,
दुनियां की सर्कस से दूर कहीं ,
सबको अपना बनता  बचपन |
Sonamkuril bachpan
वो बालपन की अटखेलियां ,
वो नन्हें नन्हें हांथों से आंटे की बनती आकृतियां ,
किसी को सांप कहते तो किसी को हाथी घोड़ा,
वो बार बार पानी में छप छ्प करती हथेलियां ,
वो दादी को चिढ़ाता बचपन ,
तो कभी दादा के संग मुस्कुराता बचपन ,
कभी पापा के कंधे पर चढ़ जाता बचपन ,
तो कभी माँ के आँचल में छिप जाता बचपन ,
वो मामा के आँखों का तारा बचपन ,
 कभी हसता , कभी रुलाता , कभी दोस्तों संग खेलने लग जाता बचपन ,
नन्हे नन्हे कदमों से आँगन छलांग लगता बचपन ,
अपनी तुतलाती बानी से सबके मन को लुभाता बचपन ,
कभी खुद ही गिरता , खुद ही संभालता , 
सारे घर को सर पर उठाता बचपन ,
तप जाता अगर कभी बदन तो सबके आँखों में पानी लाता बचपन ,
अपनी पायल की छम छम से सबके मन को हरसता बचपन ,
दुनियां की सर्कस से दूर कहीं ,
सबको अपना बनता  बचपन |
Sonamkuril bachpan
sonamkuril1938

Sonam kuril

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