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गांव की गलियों की वह भूख शहर की बड़ी-बड़ी हॉटले

गांव की गलियों की वह भूख 
 शहर की बड़ी-बड़ी हॉटले भी पूरा न कर पाती
 चूल्हे पर बनी मक्के की वो रोटी
 हर तरह के व्यंजन से स्वादिष्ट लगती
 तालाब के किनारे सुकून भरे हवा के वह जोके
 शहर की कंक्रीट भरी दिवारे कहां दे पाती
 खेतों तक पैदल चलते-चलते प्रकृति का सौंदर्य
 शहर में बाइक-कार का सफर भी ना दे पाते
 हर घर है अपना, यहां सारे हैं अपने
 यह भाव, यह सुकून मेरे गांव में ही तो देख पाते
©kirtesh #village #nojoto #poem
गांव की गलियों की वह भूख 
 शहर की बड़ी-बड़ी हॉटले भी पूरा न कर पाती
 चूल्हे पर बनी मक्के की वो रोटी
 हर तरह के व्यंजन से स्वादिष्ट लगती
 तालाब के किनारे सुकून भरे हवा के वह जोके
 शहर की कंक्रीट भरी दिवारे कहां दे पाती
 खेतों तक पैदल चलते-चलते प्रकृति का सौंदर्य
 शहर में बाइक-कार का सफर भी ना दे पाते
 हर घर है अपना, यहां सारे हैं अपने
 यह भाव, यह सुकून मेरे गांव में ही तो देख पाते
©kirtesh #village #nojoto #poem