शिकवा नही अब किसी से कोई, शिकार बन बैठे है। नजर नही आता कुछ,की हम उनसे नाराज हुए बैठे है।। दाखिल होना उनकी जिंदगी में, ये उनकी भी मर्जी थी। भूलना नही, दूर हो एक दूजे से भले ही ये मेरी अर्जी थी।। ख्वाबो का क्या ? कभी अधूरे तो कभी पूरे भी जरूर होंगे। बात इतनी सी है, याद करके भी शायद हम तुझसे दूर होंगे।। नजारे नही बदलते बस अक्सर नजरिया ही बदल जाता है। हाथ गुलाब से फिसलकर कब कांटो पर चला जाता है।। हमसफ़र की तरह रिश्ते , ताउम्र निभाने की बात करते थे। बीच मझदार में छोड़ चले, तो कभी हमे खोने से डरते थे।। नही गिनी मैंने कभी, कमियां तो तुझमे भी हजार ही थी। मेरी मोहब्बत हो हर मौसम में तेरे लिये तो सदाबहार ही थी।। ©SAKSHI JAIN #gujarish #Shades