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काश, मैं कभी बड़ा न हुआ होता  काश, मैं कभी बड़ा



काश, मैं कभी बड़ा न हुआ होता 

काश, मैं कभी बड़ा न हुआ होता,
 माता के आँचल में ही सोया रहता।

ये जिम्मेदारियों की गठरी,
ये मेरी परेशानियाँ।
हर पल इधर- उधर भटकना,
कुछ पाना और कुछ पाकर खो देना ।

एक पल का भी सुकून नहीं रह गया,
 समय के साथ - साथ सबकुछ बदल सा गया ।

काश, मैं कभी बड़ा न हुआ होता,

सुबह , दोपहर, शाम और रात यही क्रम चलता रहा।
अपने आप में मैं इतना खोता गया , 
न समय का पता चला, न उम्र का।
दर्पण ने मेरी हकीकत दिखा दिया ,

हर पल एक नई पहेली है। 
कहीं कुआँ तो कहीं खाई है,
कभी दुख, तो कभी सुख ,
ये जीवन की परछाई है।
यही जीवन की सच्चाई है।

काश, मैं कभी न बड़ा हुआ होता।

©Rakesh Kumar Das
  #हिन्दीकविता #काविता