छोड़ देने चाहिए ये क्षुद्र से आग्रह ताकि हम सारी मनुष्यता की वसीयतों को अपनी वसीयत कह सकें ये कैसी दरिद्रता और विडंबना है कि कोई हिन्दू. है इसलिए कुरान उसकी वासियत नहीं हो सकती..... औरकोई मुस्लमान है तो गीता उसकी वसीयत नहीं हो सकती जबकि गीता होया कुरान दोनों इतने प्यारे और समृद्ध ग्रंथ हैँ. लेकिन हम नाहक दरिद्र बने रहते हैँ जबकि कुरान और गीता दोनों वैश्विक समृद्धि बन सकती है और. मानवता धन्य हो सकती है ©Parasram Arora वैश्विक समृद्धि........