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दुख हारकर बैठा अभी मन दुखा नहीं है, मनुष्य वही जो

दुख हारकर बैठा अभी मन दुखा नहीं है,
मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं है।

राह नई कोई अब वो देखता है ,
सूर्य का रथ भी जहाँ माथा टेकता है।
छाँव मे बैठा है अभी थका नहीं है,
मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं है।

हमसे जो रूठें है उन्हे मनाना है,
इस बार हमें खुद को कुछ बनाना है।
समय का चक्र कभी रुका नहीं है,
मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं है।

नये दिन की नूतन बेला को प्रणाम कर,
तोड़ सारे बंधन , सारी बेड़ियाँ ,
हाथ उठा ऊपर आसमान टूटा नहीं है, 
मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं है।

नया दिन बाहें खोल स्वागत कर रहा है,
पुरानी त्रुटियों से अवगत कर रहा है।
देख शत्रु को ज़रा निशाना चूका नहीं है,
मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं है।

हार क्या है , हार भी एक जीत है,
साध्य नहीं साधना का गीत है ।
आग से डरकर समंदर सूखा नहीं है,
मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं है।

©#मरजानो_मनोजियो
  मनुष्य वही जो विपदा से झुका नहीं 

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