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होशियार रहना कि चाल बहुत गहरी है, जरा जोर से चिल्ल

होशियार रहना कि चाल बहुत गहरी है,
जरा जोर से चिल्लाओ सरकार बहरी है।

दीवार से छिपाकर मुफलिसी अपनी,
दिखाते है तस्वीर जिसकी फ्रेम सुनहरी है।

बचाओगे कैसे खुद को सोच कर रखो,
वही है कातिल जो तुम्हारा पहरी है।

समझदार खूब समझते है इस बात को,
तरक्की मुल्क की कहाँ पर क्यों ठहरी है।

तंगी ए हालात है वो साफ नजर आतें है,
दिखाया है कि घास ज्यादा हरी है।

वाजिब नही मुत्मइन होना इतनी जल्दी,
जो मिजाज है वो आवाम का जरा़ लहरी है।

घर से निकले हो तो जरा तसल्ली रखो,
अभी तो सुबह है और बाकी दुपहरी है।

दर्द क्या समझेगे झोपडी़ के रहने वालों का,
जिनके पास बडी सी हवेली है।

ये अहल ए वतन के त्यौहार नही,
ये बारूद की दिवाली खून की होली है।

मद में डूबे,जनता का शोषण करती,
ये सरकार नही जुमलेबाजों की टोली है।

क्यों पढे़गे खून से लिखी फाइलों को,
मेज के नीचे लटकती पैसों की थैली है।

ये तो मातम में भी दीये जलातें है,
क्या जानें रात अभी बडी़ अधेंरी है।

आ तो गये हो मगर उम्मीद न रखना,
दिखावे का इंसाफ नाम की कचहरी है।

*शुभम वर्मा प्रमोद*
  हरदोई ,यूपी
8707767622
#मुफलिसी-गरीबी
#मुत्मइन -भरोसा करना सरकार बहरी है।
होशियार रहना कि चाल बहुत गहरी है,
जरा जोर से चिल्लाओ सरकार बहरी है।

दीवार से छिपाकर मुफलिसी अपनी,
दिखाते है तस्वीर जिसकी फ्रेम सुनहरी है।

बचाओगे कैसे खुद को सोच कर रखो,
वही है कातिल जो तुम्हारा पहरी है।

समझदार खूब समझते है इस बात को,
तरक्की मुल्क की कहाँ पर क्यों ठहरी है।

तंगी ए हालात है वो साफ नजर आतें है,
दिखाया है कि घास ज्यादा हरी है।

वाजिब नही मुत्मइन होना इतनी जल्दी,
जो मिजाज है वो आवाम का जरा़ लहरी है।

घर से निकले हो तो जरा तसल्ली रखो,
अभी तो सुबह है और बाकी दुपहरी है।

दर्द क्या समझेगे झोपडी़ के रहने वालों का,
जिनके पास बडी सी हवेली है।

ये अहल ए वतन के त्यौहार नही,
ये बारूद की दिवाली खून की होली है।

मद में डूबे,जनता का शोषण करती,
ये सरकार नही जुमलेबाजों की टोली है।

क्यों पढे़गे खून से लिखी फाइलों को,
मेज के नीचे लटकती पैसों की थैली है।

ये तो मातम में भी दीये जलातें है,
क्या जानें रात अभी बडी़ अधेंरी है।

आ तो गये हो मगर उम्मीद न रखना,
दिखावे का इंसाफ नाम की कचहरी है।

*शुभम वर्मा प्रमोद*
  हरदोई ,यूपी
8707767622
#मुफलिसी-गरीबी
#मुत्मइन -भरोसा करना सरकार बहरी है।