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हर बार हर जन्म में मैं तो छली गई, बस यही है मेर

हर बार  हर जन्म में  मैं तो छली गई, बस यही है  मेरी असलियत,
कभी रावण तो  कभी दुशासन के हाथों, नहीं कोई  मेरी हैसियत।
कभी चाहा  कभी प्यार किया, उपभोग करके  मुझे दुत्कार दिया,
ऊँगली के इशारों की कठपुतली हूँ, बस यही है मेरी काबिलियत।
नारी सम्मान, बेटी बचाओ  बेटी पढ़ाओ, हैवानों को  समझ नहीं,
इंसान के रूप में  जन्म तो  ले रहें हैं, पर नहीं है  इनकी इंसानियत।
 #Contest 10(Hindi/उर्दू)

   💌प्रिय लेखक एवं लेखिकाओं,
‌ कृपया अपने अद्भुत विचारों को कलमबद्ध कर अपनी लेखनी से चार चांँद लगा दें।

🎀 उपर्युक्त विषय को अपनी रचना में अवश्य सम्मिलित करें

🎀 चार से छह पंक्तियों में अपनी रचना लिखें,
हर बार  हर जन्म में  मैं तो छली गई, बस यही है  मेरी असलियत,
कभी रावण तो  कभी दुशासन के हाथों, नहीं कोई  मेरी हैसियत।
कभी चाहा  कभी प्यार किया, उपभोग करके  मुझे दुत्कार दिया,
ऊँगली के इशारों की कठपुतली हूँ, बस यही है मेरी काबिलियत।
नारी सम्मान, बेटी बचाओ  बेटी पढ़ाओ, हैवानों को  समझ नहीं,
इंसान के रूप में  जन्म तो  ले रहें हैं, पर नहीं है  इनकी इंसानियत।
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‌ कृपया अपने अद्भुत विचारों को कलमबद्ध कर अपनी लेखनी से चार चांँद लगा दें।

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