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बेटी ब्याह चली अपने देश देह को त्याग, ओढ़ नया आवरण

बेटी ब्याह चली अपने देश
देह को त्याग, ओढ़ नया आवरण
चली बसाने नया घर आंगन।
नया देह,नया परिवेश, नए आशियाने
लग गई अपने नए ठिकाने बनाने।
साल दर साल बीतते गए।
भूल कर अठखेलियां, खिलखिलाना
निकल पड़ी अपना घरौंदा बनाने।
कभी रौंदी गई, कभी कुचले गए अरमान
जो थी नाजों से पली, उसके अब न रहे अरमान।
नए परिंदे जब आए उसके घोंसले
तब वापस आया बचपना उसका।
फिर पंख लगा उड़ना सीखा 
फिर कदम बढ़ा चलना सीखा।
ना जाने कब वो शीतल छांव भूल गई।
ना जाने कब वो आंचल भूल गई।
अचानक से एक दिन अहसास हुआ
की जड़ों से छूट वजूद धूमिल हुआ।
बहुत पीड़ा थी मन में, लेकिन इलाज ना था।
सवाल बहुत थे मन में लेकिन कोई जवाब न था। #अधूरा_पन
बेटी ब्याह चली अपने देश
देह को त्याग, ओढ़ नया आवरण
चली बसाने नया घर आंगन।
नया देह,नया परिवेश, नए आशियाने
लग गई अपने नए ठिकाने बनाने।
साल दर साल बीतते गए।
भूल कर अठखेलियां, खिलखिलाना
निकल पड़ी अपना घरौंदा बनाने।
कभी रौंदी गई, कभी कुचले गए अरमान
जो थी नाजों से पली, उसके अब न रहे अरमान।
नए परिंदे जब आए उसके घोंसले
तब वापस आया बचपना उसका।
फिर पंख लगा उड़ना सीखा 
फिर कदम बढ़ा चलना सीखा।
ना जाने कब वो शीतल छांव भूल गई।
ना जाने कब वो आंचल भूल गई।
अचानक से एक दिन अहसास हुआ
की जड़ों से छूट वजूद धूमिल हुआ।
बहुत पीड़ा थी मन में, लेकिन इलाज ना था।
सवाल बहुत थे मन में लेकिन कोई जवाब न था। #अधूरा_पन