बना के रखता है दूरी, होगी कोई मज़बूरी, अरमानों के जंगल में, ख़्वाहिश कब होती पूरी, वक़्त फिसलता हाथों से, रेज़ा रेज़ा कस्तूरी, सच को जाने बिना अधूरा, रहता सबकुछ बे-नूरी, समय की चक्की में सारे, पिसकर बन जाते चूरी, वक़्त लगाता है मज़लिस, करे फैसला बन जूरी, रहे सुरक्षित चक्की में, हो करीब जिसके धूरी, प्रेम पनपता है 'गुंजन', दिल देता जब मंज़ूरी, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #होगी कोई मज़बूरी#