सुनसान दोपहरी में मैं तंग , सिरफिरा सा घूमता मैं मलंग । मेरे हाथों में सिगरेट संग , धुएं में उड़ती इश्क की पतंग । मैं बस अकेला ना मेरे कोई संग , मेरी आंखों में तेरे सपनों की उमंग । चढ़ा हुआ है तेरे इश्क का रंग , मैं लुट गया हो गया काफिर नंग। बेपरवाह सा घूमता हूं मैं मलंग , बेफिक्रा बोले दुनिया देखकर मेरे ढंग । 🚬 सुनसान दोपहरी में मैं तंग , सिरफिरा सा घूमता मैं मलंग । मेरे हाथों में सिगरेट संग , धुएं में उड़ती इश्क की पतंग । मैं बस अकेला ना मेरे कोई संग , मेरी आंखों में तेरे सपनों की उमंग ।