ये रेखाएं ही तो विभाजित करती है राष्ट्रों की ठोस सरहदों क़ो जबकि अविभाज्य धरा पर खड़े है सभी राष्ट्र अपने अपने झ डो क़ो हाथ में लिये ज़ो फैला रहे है नफ़रत के सन्देश और बो रहे है बीज़ सर्व भक्षीन्नी ज्वाला के ज़ो बजा रहे है संहार के बिगुल अपनी अपनी सरहदों पर ......यही है वे राष्ट्र ज़ो जीवन के अनुरागी चित्त क़ो विद्रोह की ज्वाला में धकेलने के लिये उत्तरदाई है बिवश्ता देखे इंसान की ज़ो सरहद के उस पार जाना चाहता है लेकिन उसे जानेनही दिया जाता और उस पार के सुरभित सुमनो की गंध क़ो. सरहद के इस तरफ आने नही दिया जाता ©Parasram Arora खींची गई रेखाएं... और प्रतिबंधित सीमाये