देह रसीले सामवेद सी मन मानस की चौपाई। रूप लबालब प्रेम के घट से छलकी रस की चौपाई। डगर डगर पर उसको गाते मैंने कल्प गुज़रा है।। प्रणय चरित का महाकाव्य थी वह अन्तस् की चौपाई।। पंकज अंगार 8090853584